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अपशिष्ट पदार्थ कहते हैं? स्रोत, प्रकार, प्रभाव, प्रबंधन ( Watse material in Hindi )

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Watse material in Hindi

  • इक्कीसवी सदी में आज हम अपनी वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रगति से गौरवान्वित हैं क्योकि इसी के द्वारा हमें अनेक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हुई हैं। परन्तु इसके द्वारा जहां एक ओर जीवन की गुणवता में सुधार हुआ हैं, वही पर्यावरण अपकर्षण की समस्या का जनम हुआ है जिससे आज सम्पूर्ण विश्व चिन्तित है। पर्यावरण अपकर्षण के अनेक आयामों में से एक है- अपशिष्ट पदार्थों की वृद्धि एवं उनका पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव | औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं त्रीव जनसंख्या वृद्धि के कारण अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है और इसके निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने से गुणवत्ता स्तर में कमी आ रही है | अत: इस समस्या का समुचित विश्लेषण एवं निदान आवश्यक है।

अपशिष्ट (Waste)

  • किसी भी प्रक्रम के अन्त में बनने वाले अनुपयोगी पदार्थ या उत्पाद अपशिष्ट कहलाते हैं या इसका तात्पर्य उन पदार्थों से है जिन्हें उपयोग के पश्चात अनुपयोगी मानकर फेंक दिया जाता है। इनमें एक ओर मानव द्वारा उपयोग में लाए पदार्थ जैसे कागज, कपड़ा, प्लास्टिक, काँच, रबड़ आदि है तो दूसरी ओर उद्योगों से निस्तारित तरल पदार्थ एंव ठोस अपशिष्ट है| इसके अतिरिक्त खदानों का मलबा एवं कृषि अपशिष्ट आदि खुले में फेंक देने से पर्यावरण प्रदूषण सहित भू-प्रदूषण भी होता है। यह समस्या ग्रामों की अपेक्षा नगरों में अधिक है क्योकि जनसंख्या के जमाव तथा उद्योगों के केन्द्रीकरण से अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। सयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देश में नगरीय अपशिष्ट की मात्रा प्रतिवर्ष 4.34 करोड़ टन होती है जैसे देश में जहां कूड़ा-करकट निस्तारण की व्यवस्था नहीं है, वहां इसकी मात्रा कई गुना अधिक है|

अपशिष्ट के प्रकार (Types of waste)

  • अपशिष्ट को इसकी प्रकृति के आधार पर ठोस, तरल व गैसीय अपशिष्ट में वर्गीकृत कर सकते हैं परन्तु अपघटनीय क्रियाओं के आधार पर अपशिष्ट को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है- जैवनिम्नीकरणीय और अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट |

(1) जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट (Biodegradable waste)​

  • वे अपशिष्ट पदार्थ जिनका जैविक कारकों द्वारा अपघटन हो जाता है जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट कहलाते हैं जैसे घरेलू जैविक कचरा, कृषि अपशिष्ट व जैव चिकित्सकीय अपशिष्ट जैसे रुई, पटिट्याँ, रक्त माँस के टुकड़े आदि |

(2) अजैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट (Non- biodegradable waste)​

  • वे अपशिष्ट पदार्थ जिनका जैविक कारकों के द्वारा अपघटन नहीं होता है वे अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट कहलाते हैं जैसे प्लास्टिक की बोतले, पॉलिथीन, काँच, सीरिंज, धातु के टुकड़े आदि।

Watse material in Hindi

अपशिष्ट के स्त्रोत (Sources of waste)

  • वतावरण में अनेकों स्त्रोतों द्वारा निस्तारित किये जाते हैं जैसे घरेलू स्त्रोत, नगरपालिका, उद्योग एवं खनन कार्य, कृषि और चिकित्सा क्षेत्र |
Watse material in Hindi

1. घरेलू स्त्रोत (Household source)​

  • घरों में प्रतिदिन सफाई के पश्चात गन्दगी निकलती है जिसमें धूल-मिट्टी के अतिरिक्त कागज, गत्ता, कपड़ा, प्लास्टिक, लकड़ी, धातु के टुकड़े, सब्जियों व फलों के छिलके, सड़े’गलें पदार्थ, सूखे फल, पत्त्याँ आदि सम्मिलित हैं ।
  • यदा-कदा होने वाले समारोह तथा पार्टियों में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है। ये सभी पदार्थ घरों से बाहर, सड़कों अथवा निर्धारित स्थानों पर डाल दिये जाते है। जहां इनके सड़ने से अनेक रोगाणु उत्पन्न होते हैं जो न केवल प्रदूषण बल्कि अनेक रोगों का कारण भी है।
Watse material in Hindi

2. नगरपालिका (Municipal)​

  • इससे तात्पर्य नगर में एकत्र सम्पूर्ण कूड़ा करकट एवं गंदगी से है। इसमें घरेलू अपशिष्ट के अतिरिक्त मल-मूत्र, विभिन्न संस्थानों, बाजारों, सड़कों से एकत्रित गंदगी, मृत जानवरों के अवशेष, मकानों के तोड़ने से निकले पदार्थ तथा वर्कशॉप आदि से फेंके गए पदार्थ सम्मिलित होते है | वास्तव मे कस्बे की सम्पूर्ण गन्दगी इसमें सम्मिलित है। इसकी मात्रा नगर की जनंसख्या एवं विस्तार पर निर्भर है। एक अनुमान के अनुसार भारत के 45 बड़े नगरों से कुल मिलाकर प्रतिदिन लगभग 50,000 टन नगरपालिका अपशिष्ट निकलता है।
Watse material in Hindi

3. उद्योग एवं खनन कार्य (Industry and mining work)​

  • उद्योगों से बड़ी मात्रा मे कचरा एवं उपयोग में लाए गए पदार्थों के अपशिष्ट बाहर फेंके जाते हैं । इनमें धातु के टुकड़े रासायनिक पदार्थ, अनेक विषैले ज्वलनशील पदार्थ, तेलीय पदार्थ, अम्लीय तथा क्षारीय पदार्थ, जैव अपघटनीय पदार्थ, राख आदि सम्मिलित होते हैं ।
  • ये सभी पदार्थ पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं कतिपय उद्योगों के अपशिष्ट सारणी 13.1 में दिखाए गए हैं-
  • इसी प्रकार खनन क्षेत्रों में खानों से निकले अपशिष्ट पदार्थों के विशाल ढेर पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनते हैं |
Watse material in Hindi

4. कृषि (Agriculture)​

  • कृषि के उपरान्त बचा भूसा, घास-फूस, पत्त्याँं, डंठल आदि एक स्थान पर एकत्रित कर दिए जाते है या फैला दिये जाते हैं ये कृषि अपशिष्ट बरसात के पानी से सड़ने लगते हैं तथा जैविक क्रिया होने से प्रदूषण का कारण बन जाते हैं |
अपशिष्ट के स्त्रोत (Sources of waste)

5. चिकित्सा क्षेत्र (Medical area)​

  • अस्पतालों से निकले अपशिष्ट जैसे काँच, प्लास्टिक की बोतलें, ट्यूब, सिरिंज आदि अजैवनिम्नीकरणीय अपशिष्ट हैं इसके अलावा जैवनिम्नीकरणीय अपशिष्ट जैसे रक्त, माँस के टुकड़े संक्रमित उतक व अंग अनेक रोगों के संक्रमण हेतु माध्यम प्रदान करते है|
  • भारत के नगरों मे राख, मिश्रित पदार्थ एवं कार्बन के रुप में लगभग 90 प्रतिशत कूड़ा-करकट होता है। विकसित देशों में इसकी प्रकृति भिन्न होती है जैसे सयुकत राज्य अमेरिका में 42 प्रतिशत कागज एवं गत्ते की वस्तुएँ, 24 प्रतिशत धातु पदार्थ और 2 प्रतिशत अपशिष्ट खादय पदार्थ होते हैं | स्पष्ट है कि नगरीय अपशिष्ट आज पर्यावरण अपकर्षण का प्रमुख ‘कारण है जिसमें उत्तरोतर वृद्धि होती जा रही है।
अपशिष्ट के स्त्रोत (Sources of waste)


Watse material notes in Hindi

अपशिष्ट से होने वाले नुकसान (Losses due to waste)

  • अपशिष्ट पदार्थ मानव के साथ-साथ पेड़-पौधों, जन्तुओं व पर्यावरण को भी हानि पहुँचाते हैं । अनियमित तरीके से फेंका गया कचरा किसी भी स्थान के प्राकृतिक सौन्दर्य को प्रभावित करता है। जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट अनेकों हानिकारक सूक््मजीवों व कीटों को आकर्षित करते हैं जिनसे संक्रामक रोगों के फैलेने की संभावना बढ़ जाती है | ये अपशिष्ट सड़ने-गलने पर दुर्गन्ध उत्पन्न करते हैं जिसका वहाँ के वातावरण पर प्रभाव पड़ता है इन पदार्थों की अपघटनीय क्रिया के दौरान मेथेन, कार्बनडाईआक्साइड जैसी हानिकारक ग्रीन हाऊस गैसें उत्सर्जित होती हैं जो वातावरण को प्रदूषित करती हैं |
  • जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट का ध्यान आते ही अस्पतालों से निकलने वाले दूषित रुई, पट्टी, ब्लड बैंक, सीरींज, आइवी सेट, ट्यूब, काँच व प्लास्टिक की बोतले ध्यान मे आती हैं इन ‘कचरों के निस्तारण की दावेदारी तो खूब की जाती है लेकिन मुकम्मल इंतजाम नही है | निजी अस्पताल, गाँवों में क्लीनिक और झोलाछाप चिकित्सकों के जैव चिकित्सकीय कचरे के निस्तारण की व्यवस्था ही नहीं है। कूड़े के ढेर की ‘तरह इधर-उधर फैला जैव-चिकित्सकीय कचरा कई मायनें में खतरनाक है | इससे हेपेटाइटिस-बी, टिटेनस, संक्रमण से होने वाली बीमारियाँ, संक्रामित सुई के चुभने से एड्स और जलने पर निकलने वाले धुँए से कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती हैं |
  • लम्बे समय तक वायु, मृदा व जल के सम्पर्क में रहने पर कृत्रिम अजैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट जैसे प्लास्टिक, हानिकारक विषैले पदार्थ उत्सर्जित करने लगते हैं। प्लास्टिक जो एक पेट्रोलियम आधारित उत्पाद है इससे हानिकारक विषैले पदार्थ घुलकर जल के स्त्रोतों तक पहुंच जाते हैं जिनसे कई प्रकार के रोग होने की संभावना बढ जाती है। पॉलिथीन कचरा भी मानव से लेकर पशु-पक्षियों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। लोगों में तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं, जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो रही है, और भूगर्भीय जल स्त्रोत दूषित हो रहे हैं | प्लास्टिक के ज्यादा सम्पर्क में रहने से खून में थेलेटस की मात्रा बढ जाती है इससे गर्भवती महिलाओं के शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है | प्लास्टिक उत्पादों में प्रयोग होने वाला बिस्फेनाल रसायन शरीर में मधुमेह और लिवर एन्जाइम को असंतुलित कर देता है |
  • घरों के आगे नालियों में पॉलिथीन की थैलियों को फेंकने पर जल का बहाव अवरुद्ध हो जाता है जिससे उसमें ‘कई प्रकार के रोगकारक सूक्ष्मजीव व उनके वाहक कीट पनपने लगते हैं । कचरे में फेंकी गई पॉलिथीन की थैलिया कई बार जानवरों द्वारा खा ली जाती हैं जो उनके पेट व आंतों में फंस जाती हैं जिससे उनकी मृत्यु तक हो जाती है। इसी तरह पॉलिथीन कचरा जलाने से कार्बनडाई आक्साइड, कार्बनमोनो ऑक्साइड, डाईऑक्सींस जैसी विषैली गैसे उत्सर्जित होती हैं । इनसे श्वसन, त्वचा, आँखों आदि से संबंधित बीमारियाँ होने की आशंका बढ़ जाती है।
  • नगरों में जहां अपशिष्ट पदार्थ एकत्र होते हैं, वहां सामान्यत गन्दी बस्तियों का विस्तार हो जाता है। यहां रहने वाले लोग नारकीय जीवन व्यतीत करते हैं ये बस्तियाँ हमारे नगरीय विकास पर एक कलंक है | दिल्ली, मुम्बई, कोलकता, चेन्नई या राज्यों की राजधानियों में आज अनेक गन्दी बस्तियाँ हैं और उनका विस्तार होता जा रहा है। यही नहीं राजस्थान के अनेक नगरों जैसे जयपुर, जोधपुर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, श्रीगंगानगर, अलवर, भरतपुर आदि सभी नगरों में गन्दी बस्तियों का विस्तार होता जा रहा है। साथ ही नगरपालिकाओं के सीमित साधनों एवं उदासीनता के कारण आज सभी नगरों में अपशिष्ट पदार्थों का फैलाव रिहायशी क्षेत्रों में हो रहा है जो अत्यधिक चिन्ता का विषय है।

Watse material in Hindi FAQ –


प्रश्न 1. जैव चिकित्सकीय अपशिष्ट के निस्तारण हेतु कौनसी तकनीक उपयुक्त है–
(क) भूमि भराव
(ख) भस्मीकरण
(ग)
(घ) जल में निस्तारण

उत्तर ⇒ { (ख) भस्मीकरण }

प्रश्न 2. पुनर्चक्रण किस प्रकार के अपशिष्ट हेतु उत्तम उपचार है
(क) धात्विक अपशिष्ट
(ख) चिकित्सकीय अपशिष्ट
(ग) कृषि अपशिष्ट
(घ) घरेलू अपशिष्ट

उत्तर ⇒ { (क) धात्विक अपशिष्ट }

प्रश्न 3. निम्न में से प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है
(क) हाइड्रोजन
(ख) कार्बन मोनो ऑक्साइड
(ग) कार्बन डाई ऑक्साइड
(घ) सल्फर डाई ऑक्साइड

उत्तर ⇒ { (ग) कार्बन डाई ऑक्साइड }

प्रश्न 4. भारत के बड़े नगरों में प्रति व्यक्ति औसत कूड़ा निकलता है
(क) 1-2 किग्रा
(ख) 1 से 2 किग्रा.
(ग) 2-4 किग्रा.
(घ) 4 से 6 किग्रा.

उत्तर ⇒ { (घ) 4 से 6 किग्रा. }

प्रश्न 5. जैविक खाद बनाई जा सकती है
(क) घरेलू कचरे से
(ख) कृषि अपशिष्ट से
(ग) दोनों से
(घ) कोई नहीं

उत्तर ⇒ ???????

प्रश्न 1. बायोगैस कैसे बनाई जाती है?
उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू उपयोग के लिए अपशिष्टों, जीव-जन्तुओं के उत्सर्जी पदार्थों, जैसे-गोबर और मानव मलमूत्र के उपयोग से बायोगैस बनाई जाती है।

प्रश्न 2. क्या है?
उत्तर- किसी भी प्रक्रम के अन्त में बनने वाले अनुपयोगी पदार्थ या उत्पाद अपशिष्ट कहलाते हैं।

प्रश्न 3. ग्रीन हाउस गैसों के नाम लिखें।
उत्तर- कार्बन डाईऑक्साइड, जलवाष्प, मैथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन आदि ग्रीन हाउस गैसें हैं।

प्रश्न 4. वर्मी कम्पोस्ट किसे कहते हैं ?
उत्तर- कृषि सम्बन्धी कूड़ा-कचरा, सब्जियों के शेष भाग, पशु मल-मूत्र, गोबर आदि का ढेर कर उन पर केंचुए छोड़ दिये जाते हैं। ये केंचुए इन पदार्थों को खाने के बाद जो मल त्यागते हैं यही जैविक खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहलाती है।

Note :- आशा है की आपको यह Post पसंद आयी होगी , सभी परीक्षाओं ( Exam ) से जुड़ी हर जानकरियों हेतु को बुकमार्क जरूर करें।

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