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जैव विविधता (Biodiversity in Hindi) क्या है? – परिभाषा, प्रकार और महत्व

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Biodiversity in Hindi

जैवविविधता (Biodiversity)

  • किसी प्राकृतिक प्रदेश में उपलब्ध जीव जन्तुओं और की प्रजातियों की संख्या को जैव विविधता कहा जाता है । जैव विविधता शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिकी कीट वैज्ञानिक ई. ओ. विल्सन ने 1986 में किया, जिसे बाद में एक संकल्पना के रूप में अन्य वैज्ञानिकों एवम् पर्यावरणविदों ने अपनाया ।
  • पृथ्वी पर अनगिनत जीव-जन्तु मिलते हैं, जिनमें आनुवांशिक (Genetic) जातीय (Species) और पारिस्थितिकीय (Ecologial) विविधता देखने में मिलती है । पारिस्थितिक तंत्र में सन्तुलन बनाये रखने के लिये जीवों में जैविक विविधता होना आवश्यक है ।

1. आनुवांशिक विविधता :-

  • प्रत्येक जीव-जन्तु के गुण आनुवांशिक स्तर पर जीन (Gene) द्वारा निर्धारित होते हैं। किसी भी प्रजाति के जीवों में एक समान जीन के अलग-अलग रूपों का आकलन आनुवांशिक विविधता कहलाती है। एक प्रजाति के पर्यावरणीय परिवर्तनों में अपने आपको अच्छी तरह ढाल सकने में सक्षम होगी । इसके विपरीत आनुवांशिक विविधता कम होने पर उस प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो जायेगा, क्योंकि वह प्रजाति, पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को अनुकूलित करने में विफल रहेगी । पादपों में आनुवांशिक विविधता के द्वारा ही विभिन्न प्रजातियों का जन्म होता है ।

2. जातीय विविधता :-

  • एक पारिस्थितिक तंत्र में उपलब्ध विभिन्न प्रजातियों के जीवों की संख्या का विवरण जातिगत विविधता कही जाती है ।

3. पारिस्थतिकीय विविधता :-

  • किसी क्षेत्र में प्राकृतिक वास्य (habitat) की विविधता जैसे – वन, मरूस्थल घास के मैदान आदि को पारिस्थितिकीय विविधता कहते है। पारिस्थितिकीय विविधता में एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में ऊर्जा स्थानान्तरण, सन्तुलित खाद्य, जल और खनिज पदार्थों के चक्रीकरण की प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं । जैसे समुद्र के लवणीय जलीय तंत्र और अलवणीय जलीय तंत्र में भिन्न-भिन्न विविधता पाई जाती है । लवणीय जल में जहाँ व्हेल, शार्क जैसी बड़ी मछलियाँ मिलती हैं, वहाँ अलवणीय जल में ऐसी मछलियाँ नहीं मिलती हैं । इसी प्रकार वन, घास प्रदेश और मरुस्थल में पादप व जीव-जन्तु अलग-अलग प्रकार के मिलते हैं ।

भारत में जैवविविधता ( Biodiversity in India ) –

  • समस्त संसार में समान रूप से वितरित नहीं पाई जाती है। यह कुछ स्थानों पर अनुपस्थित, कुछ स्थानों पर अत्यन्त अल्प और कुछ स्थानों पर बहुत अधिक पाई जाती है। भारत के विशाल आकार में पाई जाने वाली भौगोलिक विषमताओं और जलवायु की भिन्नताओं के कारण पादप और जीव जन्तुओं की विस्तृत जैव विविधता पाई जाती है। भारत की जलवायु मुख्यतः उष्ण कटिबन्धीय है, किन्तु भौगोलिक विषमताओं जैसे उत्तर में हिमालय पर्वत, दक्षिण में विस्तृत समुद्र, पूर्व में आर्द्र क्षेत्र और पश्चिम में शुष्क क्षेत्र के कारण यहाँ विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है ।
  • सम्पूर्ण धरातल का लगभग 2.4 प्रतिशत भू भाग हमारे देश में स्थित है, जबकि यहाँ विश्व की 6.5 प्रतिशत जीव प्रजातियाँ और 8 प्रतिशत पादप प्रजातियाँ पाई जाती हैं । इसीलिये हमारा देश विश्व के 12 विशाल जैविक विविधता वाले देशों में से एक है। अभी तक देश के लगभग 70 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्रफल के सर्वेक्षण के बाद यहाँ 46,000 पादप प्रजातियाँ और 81,000 जीव प्रजातियाँ वर्गीकृत की जा चुकी हैं।
  • राष्ट्रीय जैविक विविधता नीति एवम् कार्य रणनीति 6 जनवरी 2000 को जारी की गई, जिसका उद्देश्य जैविक विविधता के संरक्षण और निरन्तर प्रयोग के वर्तमान प्रयासों को पुष्ट करना है। जैविक विविधता विधेयक लोकसभा में 2 दिसम्बर और राज्य सभा में 11 दिसम्बर, 2002 को पारित हुआ । इस विधेयक का प्रमुख उद्देश्य भारत की विशाल जैव विविधता का संरक्षण, विदेशी संगठनों तथा लोगों को इसके एक पक्षीय प्रयोग से रोकना तथा जैव पायरेसी को रोकना है ।

भारत के जैव विविधता के तप्त स्थल ( Hot Spot of Biodiversity in India)

  • विश्व के ऐसे भागों को जहाँ जीव-जन्तुओं की अधिकता तथा की अधिकता मिलती है, किन्तु अति दोहन के कारण इनका अस्तित्व खतरे में है, तप्त स्थल कहलाता है। विश्व का कुल 1.4 प्रतिशत भाग तप्त स्थल है, किन्तु विश्व की 60 प्रतिशत जैव विविधता यहाँ पाई जाती है। सर्वप्रथम ब्रिटिश पर्यावरणविद् नोरमन मेयर्स ने 1988 में तप्त स्थल की संकल्पना का सूत्रपात किया । विश्व में अभी तक 25 तप्त स्थलों का पता लगाया गया है, जिनमें से दो तप्त स्थल भारत में स्थित है.
  • पश्चिमी घाट तप्त स्थल :- इस तप्त स्थल का विस्तार देश के पश्चिमी समुद्र तट के सहारे लगभग 1600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल राज्यों में पाया जाता है । यहाँ देश के कुल भू भाग का मात्र 5 प्रतिशत क्षेत्र है, किन्तु यहाँ देश की लगभग 25 प्रतिशत पादप प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ जैव विविधता की दृष्टि से दो केन्द्र उल्लेखनीय हैं-
    (अ) अमामबलम रिजर्व (Amambalam Reserve)
    (ब) अगस्थमलई पर्वत (Agasthymalai Hills)
  • पूर्वी हिमालय तप्त स्थल :- यहाँ शीतोष्ण वन 1700 से 3500 मीटर की ऊँचाई तक विस्तृत हैं, जिनमें 11540 पादप प्रजातियाँ स्थित हैं । इनमें से 4052 स्थानीय प्रजातियाँ हैं ।

जैवविविधता के खतरे (Threats To Biodiversity)

  • प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रजातियाँ प्राकृतिक रूप से विलुप्त होती रही हैं और आनुवांशिक विविधता के कारण उनके स्थान पर बदलते हुए पर्यावरण के अनुसार नयी प्रजातियाँ जन्म लेती रही हैं। किन्तु गत शताब्दी में मानव द्वारा वैज्ञानिक एवम् तकनीकी विकास के माध्यम से अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिये प्रकृति का अत्यधिक दोहन करके उसे बहुत नुकसान पहुँचाया गया है। जिसके फलस्वरूप पारिस्थितिक तंत्रों में विभिन्न प्रजातियों की प्राकृतिक विलोपन दर एक प्रजाति प्रति दशक से बढ़कर 100 प्रजाति प्रति दशक हो गई है। यदि विलोपन की यह दर इसी प्रकार बढ़ती रही, तो निकट भविष्य में ही पादपों और जीव-जन्तुओं की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो जायेंगी । अतः मानवीय प्रभाव के कारण वर्तमान समय में बची हुई प्रजातियों को जीवित रहने का खतरा उत्पन्न हो गया है ।
  • वर्तमान समय में जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवासों का विनाश, शिकार, मानवीय आर्थिक क्रियाओं के फलस्वरूप बढ़ता प्रदूषण जैवविविधता के ह्यास के प्रमुख मानवीय कारण हैं । इन प्राकृतिक कारणों के फलस्वरूप भी जैवविविधता की ह्यास दर में बढ़ोतरी हुई है। इन प्राकृतिक कारणों में भूमण्डलीय तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत का छिछला होना, अम्लीय वर्षा आदि महत्त्वपूर्ण है ।

जैवविविधता का संरक्षण (Conservation of Bioversity)

  • जैवविविधता में लगातार हो रहे ह्यास को रोकने तथा मानव – हित को ध्यान में रखते हुए जैवविविधता एवम् प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने के लिये उचित प्रबन्धन को जैवविविधता का संरक्षण कहा जाता है ।
  • हमारे देश की संस्कृति प्राचीन काल से ही वन एवम् वन्यजीव प्रेमी रही है। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में वृक्ष महिमा का विस्तृत विवरण मिलता है । मत्स्य पुराण में वृक्ष महिमा के सम्बन्ध में लिखा है-
    दश कूप – समापवापी, दशवापी समोहृदः ।
    दश हृद समः पुत्रो, दश पुत्र समोद्रुमः । ।
  • अर्थात् दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब होता है, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र होता है, जबकि दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है।
  • यही नहीं हमारी संस्कृति में वृक्षों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये उनमें विभिन्न देवताओं का निवास बताया गया है । जैसे पीपल में विष्णु, आंवला में मां लक्ष्मी, बरगद में जगतपिता ब्रह्मा, बेलपत्र में भगवान शिव, कदम्ब में श्रीकृष्ण, पलास में गंधर्व, कपूर में चन्द्र, अशोक में इन्द्र आदि देवता निवास करते हैं ।
  • हमारे देश के दो बहुमूल्य महाकाव्य रामायण एवम् महाभारत में अरण्य संस्कृति का विस्तृत वर्णन मिलता है । बौद्ध एवम् जैन धर्म का प्रमुख आधार अहिंसा परमोधर्मः रहा है। महान सम्राट अशोक ने वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाया था, जिसका उल्लेख उनके शिलालेखों में पाया जाता है । बाद के शासनकालों में भी प्रकृति संरक्षण पर पर्याप्त जोर दिया गया।
  • हमारी संस्कृति में वृक्ष महिमा के साथ-साथ अहिंसा परमोधर्मः के मूलमंत्र द्वारा जीवों की रक्षा की ओर भी समाज का ध्यान आकर्षित किया गया है । विभिन्न जीवों को देवत्व स्थान प्रदान कर उनके वध पर प्रतिबन्ध की व्यवस्था की गई । जैसे विष्णु भगवान के वाहन गरुड़, शिव के वाहन नंदी, दुर्गा के वाहन सिंह, इन्द्र के वाहन हाथी, कार्तिकेय के वाहन मयूर, गणेश के वाहन चूहा, लक्ष्मी के वाहन उल्लू, सरस्वती के वाहन हंस आदि को देवत्व स्थान दिया जाता हैं इसी प्रकार विष्णु भगवान के विभिन्न अवतारों जैसे कूर्मावतार, वाराहावतार, मत्स्यावतार, नृसिंहावतार को देवत्व रूप दिया गया है।
  • विश्व के अन्य किसी देश में ऐसी समृद्ध प्रकृति प्रिय संस्कृति देखने को नहीं मिलती ।

वर्तमान में तीव्र गति से हो रहे जैवविविधता के ह्यास के संरक्षण हेतु निम्न उपाय किया जाना आवश्यक है –

  1. कृत्रिम संग्रहण ( Artificial Stocking) कृत्रिम संग्रहण के अन्तर्गत ऐसी प्रजातियों का संरक्षण आता है, जिनके विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है। ऐसी प्रजातियों का उन्हीं क्षेत्रों में आसानी से संरक्षण किया जा सकता है, जहाँ वे विलुप्त होने के कगार पर हैं ।
  2. आवास स्थल में सुधार ( Improvement in Dwelling Place) – मानव ने अपनी उन्नति और समृद्धि के लिये जीवों के प्राकृतिक आवासों को या तो नष्ट कर दिया है अथवा इन्हें विकृत कर दिया है। जीवों के ऐसे विकृत या नष्ट प्राकृतिक आवासों के सुधार की आवश्यकता है ताकि उनमें निवास करने वाली प्रजातियों को भोजन एवम् अन्य आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध हो सकें। भारत में अब तक 18 जैवमण्डलीय आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए जा चुके हैं। ये नीलगिरी, नंदादेवी, नोकरेक, ग्रेट निकोबार, मन्नार की खाड़ी, मानस, सुन्दरवन, सिमलीपाल, पचमढ़ी, कंचनजोंगा, अगस्थ्यमल्लाह, पन्ना, अचनकमर-अमर कंटक, सेशाचेलम, लाम दाफा, उत्तराखण्ड, थार का रेगिस्तान, कच्छ का छोटा रन, कान्हा, काजीरंगा, उत्तरी अंडमान, आदि हैं। इन 18 आरक्षित जैवमण्डलों में से नौ (09) – नीलगिरी, सुन्दरवन, मन्नार की खाड़ी, नन्दादेवी, नेफरेक, ग्रेट निकोबार, सिमलीपाल, पचमढ़ी और अचनकमर—अमरकंटक को यूनेस्को ने मान्यता प्रदान कर दी है।
  3. प्रतिबन्धित आखेट ( Restricted Hunting):- जिन जैव प्रदेशों में वन्यजीवों की अधिकता के साथ ही उनमें उच्च प्रजनन दर पायी जाती है, वहाँ प्रतिबंधित आखेट किया जा सकता है अन्यथा संवेदनशील क्षेत्रों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए ।
  4. वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम (Wildlife Conservation Act) :- अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति एवम् प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन (International Union of Conservation of Nature and natural Resources-IUCN) तथा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme UNEP) ने विश्व के समस्त राष्ट्रों को पर्यावरण संरक्षण नियमों की ऐसी प्रभावी प्रणाली विकसित करने को कहा है, जिससे मानवाधिकार सुरक्षित रह सकें और साथ ही भावी पीढ़ी के हितों पर भी कुठाराघात नहीं हो ।
    हमारा देश उन गिने चुने देशों में से है, जहाँ 1894 से ही वननीति लागू है । इस वननीति में 1952 और 1988 में संशोधन किया गया। संशोधित वन नीति, 1988 का मुख्य आधार वनों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास है। यही नहीं आगामी 20 वर्षों के लिये राष्ट्रीय वन्य कार्यक्रम के अन्तर्गत एक वृहत् योजना तैयार की गई है, जिसका उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना और देश के एक-तिहाई भाग को वृक्षों / वनों से आवृत करना है।
    इसी प्रकार राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यशाला, 1983 को संशोधित करके नई वन्यजीव कार्ययोजना (2000-2016) बनाई गई है, जिसके अन्तर्गत वन्यजीवन संरक्षण और विलुप्त होती जा रही प्रजातियों के संरक्षण के लिये कार्यक्रम बनाये जाते हैं
  5. राष्ट्रीय उद्यान एवम् अभयारण्यों की स्थापना (Establishment of National Park and Sancturies) :- हमारे देश में अब तक 89 राष्ट्रीय उद्यानों और 490 अभ्यारण्यों की स्थापना की जा चुकी है, जो देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 150,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत हैं। इनका प्रमुख उद्देश्य वन्यजीवों का संरक्षण, अवैध तरीके से वन्य जीवों के शिकार और वन्यजीव उत्पादों के अवैध व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाना, राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों के समीपवर्ती क्षेत्र में पारिस्थितिकी विकास करना है।
    राजस्थान में वन्यजीवों के संरक्षण के लिये 4 राष्ट्रीय उद्यानों, 26 अभ्यारण्यों 35 निषेध क्षेत्रों तथा 5 चिड़ियाघरों की स्थापना की जा चुकी है। राष्ट्रीय उद्यानों में राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान, रणथम्भौर, (सवाईमाधोपुर), घना केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान, (भरतपुर), राष्ट्रीय मरू उद्यान, (जैसलमेर) और सरिस्का वन्य जीव राष्ट्रीय उद्यान, (अलवर) में स्थित है। राज्य के प्रमुख अभ्यारण्य दर्रा (झालावाड़), तालछापर (चूरू), नाहरगढ़ (जयपुर), जयसमन्द (उदयपुर), कुम्भलगढ़ (पाली), बंध बारेठा (भरतपुर), वन विहार (धौलपुर), सीतामाता ( चित्तौड़गढ़), माउन्ट आबू (सिरोही), रावली टाड़गढ़ ( अजमेर), चम्बल (कोटा), जवाहर सागर (कोटा), जमुवा रामगढ़ (जयपुर), केलादेवी (करौली), गजनेर (बीकानेर) हैं।

प्रकृति में विविधताएँ :-

  • विभिन्नताएँ (Variations) प्रकृति का नियम है तथा ये प्रकृति के लगभग सभी जीवधारियों (Organisms) में सार्वभौमिक (Universal) रूप से उपस्थित होती है। जीवधारियों में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की विभिन्नताएँ लाखों-करोड़ों वर्षों में हुए जैविक उद्विकास (Organic Evolution) की परिणति है । सारा जैवमण्डल (Biosphere) इन्हीं विभिन्नताओं के माध्यम से संचरित एवं नियंत्रित होता है। इनको ही वैज्ञानिक भाषा में “जैव विविधता” (Biodiversity) के नाम से पुकारा जाता है।
  • जैवविविधता को जैविकविविधता (Biological diversity) भी कहते हैं तथा इसका साधारण शब्दों में सीधा सादा अर्थ है- एक क्षेत्र के जीन्स, जातियों तथा पारिस्थितिक तंत्र की संख्या (The totality of genes, species and ecosystem of a region) अथवा विश्व में पाए जाने वाले विभिन्न जीवधारी एवं उनकी विविध जातियाँ | जैवविविधता स्थान दर स्थान विभिन्न होती है ।

जैवविविधता को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जा सकता है—

  • “जीवधारियों में उपस्थित विभिन्नता, विषमता तथा पारिस्थितिकी जटिलता ही जैव विविधता कहलाती है । “
    जैवविविधता की कुछ अन्य परिभाषाएँ भी प्रस्तुत की गई हैं । जैसे –
  • (अ) कन्वेंशन ऑन बॉयलॉजिकल डायवर्सिटी (Convention on Biological Diversity-CBD); जॉनसन, 1993 के अनुसार “जैविक विभिन्नताएँ स्थल, समुद्र व जलीय (मीठे) पारिस्थितिक तंत्रों में पायी जाती हैं। यह विभिन्नता समष्टि (Population) की जातियों में ( within species), जातियों के बीच में (between spcies) एवं पारिस्थितिक तंत्र की जातियों में हो सकती है।”
  • (ब) “पृथ्वी रूपी, वासोपयोगी जहाज (Habitat ship) पर मनुष्य के जीवन का आधार ही जैव विविधता है ।”
  • वनों की सघनता जैव विविधता में अभिवृद्धि करती है । विश्व में ब्राजील देश के सघनतम भूमध्यरेखीय वनों में जीव- जंतुओं व पशु पक्षियों की सर्वाधिक जातियाँ पाई जाती है। ब्राजील के पश्चात् विश्व में हमारा देश भारत ऐसा भाग्यशाली देश है, जहाँ पर सर्वाधिक जैव-विविधता पाई जाती है । विश्व में सबसे अधिक जैवविविधता भूमध्य रेखा ( equator) के दोनों ओर तथा ध्रुवों (poles) पर सबसे कम जैव विविधता होती है।
  • पारिस्थितिक तंत्र अथवा पारितंत्र (Ecosystem) में संतुलन हेतु जीवधारियों (प्राणियों, वनस्पतियों, सूक्ष्मजीवधारियों) में जैव विविधता अनिवार्य रूप से होनी चाहिए अन्यथा समष्टि अथवा जनसंख्या (population) में जीन स्तर पर विविधता अल्प होती है तथा उसके विलुप्त (Extinct) होने की प्रबल संभावना बनी रहती है ।
  • जैवविविधता एक अद्भुत प्राकृतिक स्रोत है। इसका विलोपन सदा के लिए होता है, जैसे- हम अब ‘डायनासोर’ को पुनः उत्पन्न नहीं कर सकते हैं ।
  • सन् 1992 में ब्राजील देश के शहर रियो दि जेनेरो (Rio de Janeiro) में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन (Earth summit) में हुए पारस्परिक विचार विमर्श में जैव विविधता को जातियों में पायी जाने वाली परिवर्तनीयता (Variability) माना गया है। इस विविधता के अंतर्गत वे सभी स्थलीय जलीय और सागरीय पारितंत्र आते हैं, जो इन प्राणियों का आवास है । दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग शहर में सन् 2002 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वितीय में यह चिन्ता व्यक्त की गई थी कि वैश्विक पर्यावरणीय साझेदारी पर्यावरण दोहन का नया लाभोन्मुखी जरिया न बन जाए।
  • विश्व में अधिकतम जैव विविधता प्रवाल भित्तियों (Coral reefs), नम प्रदेश (Wet lands), मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र (Mangrove ecosystem) तथा उष्णकटिबन्धीय पारिस्थितिक तंत्र में व्याप्त होती है । प्रवाल भित्तियों के क्षेत्र की जैवविविधता अधिकतम पायी जाती है। महासागरीय तलीय क्षेत्र के एक प्रतिशत प्रवाल क्षेत्रों में महासागरीय 25 प्रतिशत जीवों को संरक्षण प्राप्त होता है ।

जैवविविधता की संकल्पना (Concept of biodiversity) –

जैव विविधता (Biodiversity) क्या है? - परिभाषा, प्रकार और महत्व

  • प्रत्येक जीवधारी का शरीर उसके जीनों से निर्मित होता है एवं उसके शरीर की कार्यिकी भी इन्हीं जीनों के द्वारा नियंत्रित होती है। जीन ही जैवमण्डल की जैवविविधता का मूलभूत आधार होता है । पर्यावरणीय ह्यास के फलस्वरूप विगत वर्षों में जैवविविधता की संकल्पना / अवधारणा विकसित हुई है। जैविक विविधता एवं सम्पन्नता प्रकृति का एक अति महत्वपूर्ण गुण है, जो पृथ्वी पर विकास की प्रक्रिया का परिणाम है तथा सतत् संरक्षण हेतु प्रार्थी है। प्राकृतिक आवासों के अकल्पनीय विनाश के कारण ही गत वर्षों में जैव विविधता के हास का संकट प्रकट हुआ है। उदाहरणार्थ- हमारे प्रांत राजस्थान में कृष्ण (काले) मृगों का शिकार, उत्तरांचल प्रांत के विश्व विख्यात जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में लगभग आधा दर्जन हाथियों का शिकार, ट्राईपाइनासिमियोसिस नामक बीमारी के कारण नंदन कानन अभ्यारण्य में 13 बाघों की अकाल मृत्यु इत्यादि ऐसी असहनीय घटनाएँ ही इस वास्तविकता का पुरजोर समर्थन करती हैं कि हमारे देश में भी जैव विविधता का क्षेत्र आसन्न संकटों से अछूता नहीं है ।
  • मानव के जीवन निर्वाह हेतु जैवविविधता का अस्तित्व हर सूरत में बना रहना अति आवश्यक है । प्रदूषण (Pollution) का उद्गम मानवीय क्रियाकलापों की ही देन है। निरंतर उत्तरोत्तर रूप में अपने पैर पसार रहा प्रदूषण जैव विविधता का ग्राफ निश्चित तौर पर घट रहा है । मनुष्य अब तक लगभग एक लाख प्राणी जातियों तथा लगभग 76% वन्य प्राणियों को अपने लाभ हेतु उपभोग करते हुए उनका संपूर्ण रूप से अस्तित्व ही समाप्त कर चुका है।
  • जैवविविधता में कमी, वर्तमान विश्व की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। इसकी कमी जीवों की उद्विकासीय (Evolutionary) समर्थता को प्रभावित करती है और वे पर्यावरणीय बदलावों से संघर्ष करने में अपने आपको असहाय पाते हैं ।
  • जैवविविधता की संकल्पना में जातियों (Species) की एक निर्णायक स्थिति (Crucial position) होती है। प्रकृति में वंश वृद्धि के योग्य (able to breed), उत्पादक जीवन तथा पुनः उत्पादक संतान (Fertile offspring) वाले समान प्रकार के जीवों को जाति कहते हैं । प्रकृति में जातियाँ मिलकर संकरण (Hybridization) के द्वारा नवीन जाति को जन्म देती हैं। इस प्रकार जैव विविधता जीवन की निरंतरता तथा पर्यावरण की दीर्घावधि, टिकाऊपन हेतु एक अति आवश्यक महत्त्वपूर्ण शर्त है ।

जैवविविधता का मूल्य / महत्त्व ( Value of biodiversity) –

  • प्रकृति में विद्यमान प्राणी एवं वनस्पति मानव मात्र (Human beings) हेतु नाना प्रकार से लाभदायक हैं। प्राचीन समय से ही मानव अपने भोजन, कपड़े, निवास, औषधियों इत्यादि हेतु प्रत्यक्ष–अप्रत्यक्ष रूप से जैव विविधता पर निर्भर रहा है। हमारी बौद्धिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक विविधता भी जैव विविधता का ही अंग है । प्राकृतिक संसाधनों पर ही राज्य, राष्ट्र और विश्व की आर्थिक व्यवस्था निर्भर करती है । जिस देश की जैवविविधता उच्च कोटि की होती है, तदनुरूप वह राष्ट्र आर्थिक दृष्टि से भी पूर्ण आत्मनिर्भर होता है। इस प्रकार जैव विविधता हमारे लिए उपभोगात्मक दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, वरन् इसका उत्पादक महत्त्व भी है।

(I) खाद्य मूल्य (Food value ) –​

  • प्रसिद्ध पारिस्थितिकीविद् (Ecologist) नॉमर्न मेयर्स के मतानुसार मनुष्य के द्वारा लगभग 80,000 पौधों की जातियों का उपभोग खाद्य के रूप में किया जाता है। संसार की संपूर्ण भोजन प्राप्ति मुख्य रूप से गेहूं, चावल, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, चुकन्दर, अरहर, नारियल, आलू, कसावा, शकरकन्द, चिकबीन्स, फिल्डबीन्स, गन्ना इत्यादि पर अवलम्बित है। इनके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के फल जैसे केला, आम, सीताफल (शरीफा), पपीता, अंगूर, सेब, संतरा, तरबूज, खरबूजा इत्यादि तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ जैसे- बैंगन, भिण्डी, गोभी, टमाटर आदि एवं विभिन्न प्रकार की मछलियाँ संसार की खाद्य आपूर्ति में मुख्य भूमिका का निर्वहन करती हैं । वनस्पतियों की कुछ जातियाँ जैसे अदरक, हल्दी, केसर, धनिया, हींग, सौंफ, जीरा, अजवायन, तेजपत्ता, कालीमिर्च आदि का उपयोग मुख्यतः घरेलू एवं व्यापारिक तौर पर किया जाता है ।

(II) औषधीय मूल्य (Medicinal value) –​

  • विभिन्न प्रकार की औषधियाँ प्राणियों एवं वनस्पतियों से प्राप्त की जाती हैं । इनका विवरण अग्र प्रकार है ।

मेडागास्कर पेरिविकल (Madagascar Periwinkle, Catharanthus roseus) या सदाबहार के पौधे से विनब्लास्टीन एवं विन्क्रिस्टीन नामक कैंसर रोधी औषधियाँ

जैव विविधता (Biodiversity) FAQ –


प्रश्न 1. विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता किस देश में पायी जाती है?
(अ) ब्राजील
(ब) भारत
(स) दक्षिण अफ्रीका
(द) जर्मनी

उत्तर ⇒ { A }

प्रश्न 2. ‘वन्दनवार’ हेतु कौन-से वृक्षों की पत्तियाँ सामान्यतः प्रयुक्त की जाती हैं?
(अ) अशोक एवं पीपल
(ब) आम एवं जामुन
(स) अशोक एवं आम
(द) बरगद एवं पीपल

उत्तर ⇒ { C }

प्रश्न 3. जिसमें अधिकतम जैव विविधता मिलती है-
(अ) नम प्रदेश
(ब) प्रवाल भित्तियाँ
(स) मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र
(द) उष्ण कटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र

उत्तर ⇒ { B }

प्रश्न 4. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान स्थित है-
(अ) भरतपुर
(ब) अलवर
(स) जयपुर
(द) सवाईमाधोपुर

उत्तर ⇒ { D }

प्रश्न 5. राजस्थान का राज्य वृक्ष है-
(अ) ढाक
(ब) खेजड़ी
(स) इमली
(द) कदम्ब

उत्तर ⇒ { B }

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