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गृह विज्ञान (Grah Vigyan)- अर्थ एवं परिभाषा, उद्देश्य, क्षेत्र, महत्त्व, उपयोगिता

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गृह विज्ञान – अर्थ एवं परिभाषा, उद्देश्य, क्षेत्र, महत्त्व, उपयोगिता

गृह विज्ञान – अवधारणा एवं क्षेत्र (Home Science – Concept & Scope)

Grah Vigyan

  • गृह-विज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है, गृह यानि कि घर एवं विज्ञान यानि कि ज्ञान अर्थात् घर से सम्बन्धित क्रमिक ज्ञान ही गृह विज्ञान है। विश्व में इस विषय को विभिन्न नामों जैसे (Domestic Art), घरेलू विज्ञान (Household Science), घरेलू कला (Household Art), घरेलू अर्थशास्त्र (Household Economics), घरेलू प्रशासन (Household Administration) तथा गृह – विज्ञान (Domestic Science) आदि नामों से जाना जाता है। अमेरिका में यह “गृह अर्थशास्त्र’ तथा इंग्लैण्ड व भारत में “गृह विज्ञान” के नामों से प्रचलित है ।
  • अमेरिका में समय-समय पर गृह अर्थशास्त्र को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। सन् 1902 “लेक प्लॅसिड सम्मेलन” में इसे व्यापक एवं संक्षिप्त रूप में परिभाषित किया गया । अत्यधिक व्यापक रूप में “गृह अर्थशास्त्र उन नियमों, दशाओं, सिद्धांतों और आदर्शों का अध्ययन है जो कि एक ओर तो मानव के तात्कालीन भौतिक वातावरण से संबन्धित है तथा दूसरी ओर उसकी मानवीय प्रकृति से, यथार्थ में यह इन दोनों कारकों के मध्य संबंध का अध्ययन है।” संक्षेप में “यह गृह कार्यों की व्यवहारिक समस्याओं के विशिष्ट संदर्भ में आधारीय विज्ञान का अध्ययन है । “
  • अमेरिकन होम इकोनोमिक्स एसोसिएशन (American Home Economics Association) के अनुसार गृह अर्थव्यवस्था शिक्षा का विशिष्ट विषय है जिसके अन्तर्गत , वस्त्र एवं आवास की स्वच्छता तथा सौंदर्य के पक्ष का पारिवारिक व अन्य मानव समुदायों द्वारा चयन, तैयारी एवं उपयोग आदि के संबंध में अध्ययन किया जाता है ।
  • Home economics as a distinctive subject of instructions is the study of economics, sanitary and aesthetic aspect of food, clothing and shelter as connected with their selection, preparation and used by the family in the home or by others and groups and other people.
  • डॉ. राजमल पी. देवदास ने अपनी पुस्तक “ए टैक्स्ट बुक ऑफ होम साइन्स’ में लिखा है “गृह विज्ञान घर बनाने की एक कला है तथा इसे शिक्षण संस्थानों में वैज्ञानिक तरीके एवं सुव्यवस्थित रूप से एक सामान्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिये ।”
  • सामान्यतः गृह विज्ञान के विषय में प्रचलित मूल धारणा यह है कि इस विषय से शिक्षित गृहिणी स्वादिष्ट भोजन पकाये, उसे आकर्षक तरीके से परोसे, सुन्दर परिधान सिले, घर को आकर्षक व सौंदर्यपूर्ण तरीके से सजाये, निश्चित आय में अपने परिवार को सुनियोजित रूप से चलाये आदि। लेकिन वास्तव में गृह विज्ञान एक व्यवहारिक विज्ञान है जिसके अन्तर्गत विज्ञान एवं कला के विविध तत्वों को अच्छे स्वास्थ्य, मानवीय संबंध, संसाधनों के प्रबन्ध, बच्चों के पालन-पोषण, परिवार के भोजन व वस्त्र, रोगियों की देखभाल, घर की व्यवस्था, चरित्र एवं व्यक्तित्व के विकास तथा कला की अभिवृद्धि व प्रोत्साहन आदि प्रक्रियाओं के लिये उपयोग में लाया जाता है
  • गृह विज्ञान एक कला भी है जिसका तात्पर्य सुन्दरता की अभिव्यंजना से है। यह विज्ञान एवं कला का एक अद्भुत संगम है जिसमें वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रतिदिन के कार्यों के संपादन हेतु कलात्मक तरीके से प्रयोग किया जाता है। जैसे स्वादिष्ट भोजन पकाना एक कला है तो भोजन को संतुलित व पौष्टिक बनाने के लिये भोज्य पदार्थों के पोषक तत्वों का ज्ञान होना विज्ञान है । इसी प्रकार एक गृहिणी यदि अपने बच्चे के लिये सिलाई कला का उपयोग करते हुए सुन्दर परिधान सिलती है तो उसके द्वारा बच्चे की उम्र, लिंग, जलवायु, अवसर तथा उपलब्ध धन से मितव्ययता बरतते हुए सही व मजबूत वस्त्र का चुनाव करना तथा सिलाई के नियमों का ज्ञान होना विज्ञान है ।
  • गृह विज्ञान की शिक्षा द्वारा छात्र – छात्राओं को अपने परिवार की सुख-समृद्धि एवं वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उपलब्ध साधनों का बुद्धिमता, निपुणता तथा सुनियोजित ढंग से उपयोग कर घर व परिवार को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विस्तार किया जाता है।
  • प्राचीन काल में एक बालिका को विवाह से पूर्व चौंसठ कलाओं का ज्ञान एवं कतिपय कलाओं में निपुणता प्राप्त करना अनिवार्य होता था, अर्थात् भावी गृहिणी की तैयारी उसे बाल्यावस्था से ही करवाई जाती थी। बालिका को उसकी माँ या घर पर अन्य बुजुर्ग महिला द्वारा परिवार में होने वाली विभिन्न क्रियाओं जैसे पाक कला, मेहमानों की आवभगत व उनका मनोरंजन, बच्चों का पालन-पोषण, घर की व्यवस्था, वस्त्र सिलना, सामाजिक रीति-रिवाज़ों का पालन करना तथा परिवार के सभी सदस्यों का यथा संभव ध्यान रखना सिखाया जाता था । प्राचीनकाल में बालिकाएँ यह शिक्षा मौखिक रूप से एक दूसरे से सुनकर व बड़ों के अनुकरण एवं अवलोकन द्वारा सीखा करती थी । आज के प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक युग में जब शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण के तहत संयुक्त परिवार प्रणाली खत्म होती जा रही है तथा महिलाओं की भागीदारी घर के बाहर भी विस्तार ले रही है तो घरों में गृह विज्ञान शिक्षण की संभावनाएँ कम होती जा रही हैं। साथ ही घर द्वारा प्राप्त इस शिक्षा में वैज्ञानिक सिद्धांतों का समावेश भी नहीं होता था तथा यह शिक्षा अनुभवों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी दी जाती थी । इन्हीं कारणों से गृह विज्ञान की शिक्षा आजकल सुव्यवस्थित रूप से वैज्ञानिक आधार पर विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में दी जाती है।

गृह विज्ञान के उद्देश्य —


1. छात्र – छात्राओं के ज्ञान, कौशल एवं सामर्थ्य का विकास कर वैज्ञानिक सिद्धांतों को दैनिक जीवन के लिये व्यवहार में लाना ।
2. छात्र-छात्राओं में परिवार व सामुदायिक जीवन की आवश्यकताओं, समस्याओं एवं इन समस्याओं के समाधान के लिये समझ पैदा करना ।
3. छात्र-छात्राओं में उन्नत जीवन स्तर को प्राप्त करने की योग्यता एवं निपुणता को बढ़ाना ।

गृह विज्ञान के क्षेत्र


विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाये जाने वाले गृह विज्ञान के मूलतः पाँच विभा हैं, जिसमें कला एवं विज्ञान के विविध विषयों का संगम है। गृह विज्ञान के पाँच विभाग एवं उनकी विषय सूची निम्नानुसार है:

Grah Vigyan


1. खाद्य एवं पोषण (Food & Nutrition ) :​

  • वायु एवं जल के पश्चात् भोजन ही हमारी मूलभूत आवश्यकता है जो कि मनुष्य को जीवन एवं स्वास्थ्य प्रदान करता है । स्वादिष्ट एवं पौष्टिक भोजन उसे तृप्ति तथा स्वस्थ जीवन प्रदान करता है । सुपोषण प्राप्त करने के लिये मनुष्य को प्रसन्नचित रहकर संतुलित भोजन गृहण करना चाहिये । व्यक्ति अपनी आयु, लिंग, व्यवसाय, जलवायु एवं शारीरिक अवस्था के अनुरूप भोज्य पदार्थों का सही-सही चुनाव तभी कर सकता है जब उसे भिन्न-भिन्न भोज्य पदार्थों के विविध कार्यों, उनमें निहित पोषक तत्वों, उनकी दैनिक आवश्यकता तथा पोषक तत्वों के अधिकतम उपयोग आदि का ज्ञान हो। इसके साथ-साथ उसे स्वादिष्ट भोजन पकाना एवं पके हुए भोजन को आकर्षक तरीके से परोसना भी आना चाहिये ताकि खाने वाले की भूख जागृत हो तथा वह भोजन से तृप्ति प्राप्त कर सकें। खाद्य एवं पोषण के अन्तर्गत विभिन्न शारीरिक अवस्थाओं जैसे शैशवास्था, , किशोरावस्था, प्रसूतावस्था, धात्रीवस्था, वृद्धावस्था एवं विभिन्न रोगों की अवस्था के दौरान आहार संबंधी आवश्यकताओं एवं परिवर्तनों की शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त आवश्यकता से अधिक भोज्य पदार्थों का संग्रहण एवं परिरक्षण, समुदाय में व्याप्त पोषण सम्बन्धी समस्याएँ तथा इन समस्याओं से निपटने के लिये चलाये जा रहे विभिन्न पोषाहार कार्यक्रमों की भी जानकारी दी जाती है ।

2. मानव विकास एवं पारिवारिक अध्ययन (Human Development and Family Studies) :​

  • घर ही बालक का प्रथम पालना एवं पाठशाला है जहाँ पारिवारिक सदस्यों के सान्निध्य में प्रेम व सहयोग के वातावरण में उसका पूर्णरूपेण विकास होता है । गृह विज्ञान के इस विभाग में नवजात शिशु से लेकर वृद्धावस्था तक शारीरिक, सामाजिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास के विविध क्रमिक सोपान, पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाएँ, इन अवस्थाओं की भिन्न-भिन्न समस्याओं एवं उनके समाधान तथा विवाह, परिवार, मानवीय एवं सामाजिक रिश्तों से सम्बन्धित अनेक विषय सम्मिलित हैं। इसके अध्ययन से गृहिणी अपने बच्चों के स्वास्थ्य व विकास के विविध आयामों पर पूर्णरूपेण नजर एवं नियन्त्रण रख सकती है तथा उन्हें एक स्वस्थ सामाजिक एवं उत्तरदायी नागरिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।

3. पारिवारिक संसाधन प्रबन्धन ( Family Resource Management) :​

  • पारिवारिक संसाधन प्रबन्धन का अध्ययन छात्र – छात्राओं को सीमित संसाधनों का समुचित उपयोग एवं प्रबन्धन करने में सक्षम बनाता है, जिससे वे अपने परिवार को सुनियोजित व सुव्यवस्थित रूप से चला सकें । इस विषय के अध्ययन से व्यक्ति अपने सीमित समय, श्रम, धन एवं आसपास मौजूद अन्य संसाधनों जैसे: हवा, पानी एवं सामुदायिक सुविधाओं (सड़क, पार्क, अस्पताल, विद्यालय, पोस्ट ऑफिस, बैंक आदि) का अधिकतम उपयोग अपने परिवार व घर की समुचित देखभाल, सजावट तथा आस-पास के पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिये कर सकता है ।

4. वस्त्र एवं परिधान अभिकल्पन (Clothing and Textiles and Apparel Designing) :​

  • वस्त्र व परिधान मनुष्य के व्यक्तित्व का आईना हैं । ये मनुष्य की रचनात्मक योग्यता, अंतर्निहित सौंदर्य, प्रसन्नता एवं आकर्षण को अभिव्यक्त करते हैं । वस्त्र विज्ञान के अन्तर्गत छात्र-छात्राएँ वस्त्रों में निहित रेशों, उनसे बने धागों व वस्त्रों की बुनाई, बनावट व विशेषताओं का अध्ययन करते हैं, जिससे वे अपने व परिवार के विभिन्न सदस्यों के लिये उम्र, लिंग, व्यवसाय, जलवायु, अवसर, प्रयोजन, पसन्द-नापसन्द व उपलब्ध धन आदि के आधार पर उपयुक्त वस्त्रों व परिधानों का चुनाव व खरीददारी कर सकें । छात्र-छात्राओं को व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं अवसर के अनुरूप आकर्षक परिधान सिलना तथा उनकी देखभाल (धुलाई, इस्त्री, संग्रहण आदि) करना भी सिखाया जाता है।

5. गृह विज्ञान प्रसार एवं संचार प्रबन्ध (Home Science Extension & Communication Management) :​

  • छात्र – छात्राओं को गृह विज्ञान के विभिन्न विषयों में शिक्षित करना ही हमारा एक मात्र उद्देश्य नहीं है बल्कि इस शिक्षा को गाँवों व शहरों में घर-घर तक पहुँचाना तथा सामुदायिक जीवन की अधिकतम उन्नति हेतु इसका उपयोग करना भी है। गृह विज्ञान के विविध विषयों से प्राप्त शिक्षा को समुदाय एवं समाज के लोगों तक प्रसारित करना तथा उनके जीवन स्तर को उन्नत करना व अच्छा जीवन यापन करने के लिये गृह विज्ञान शिक्षा को उपयोग में लेने हेतु प्रेरित एवं निश्चित करना ही प्रसार शिक्षा है। गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा द्वारा छात्र – छात्राओं को प्रसार शिक्षा एवं संचार के विभिन्न साधनों जैसे व्याख्यान, प्रदर्शन, नाटक, टीवी, रेडियो, प्रदर्शनी आदि एवं विविध गुरों जैसे निर्णायक क्षमता, प्रबन्ध क्षमता एवं प्रभावी नेता के रूप में आदि का उपयोग करते हुए अपने समुदाय के लोगों को जागृत करना होता है। उनमें इतनी समझ पैदा की जाती है कि वे अपनी आवश्यकताओं व परेशानियों को पहचान सकें तथा उपलब्ध संसाधनों द्वारा उनका समाधान कर सकें ।

गृह विज्ञान शिक्षा का महत्त्व :

  • अब तक आप समझ गये होंगे कि गृह विज्ञान केवल भोजन पकाना, परिधान सिलना या घर सजाना ही नहीं है बल्कि इसका क्षेत्र इन सबसे कहीं अधिक विस्तृत है। इस विषय से शिक्षित विद्यार्थी वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए घर से संबंधित विभिन्न क्रिया-कलापों को पूर्ण कौशल, निपुणता, सुन्दरता, रूचिपूर्ण एवं कलात्मक तरीके से संपादित करते हैं ताकि परिवार व समुदाय स्नेह व सहयोग के माहौल में उत्तम जीवनयापन कर सकें । गृह विज्ञान शिक्षा का महत्त्व केवल घर एवं परिवार तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका व्यावसायिक एवं सामाजिक महत्त्व भी है।

घरेलू स्तर पर :-​


1. शैशवास्था से लेकर वृद्धावस्था तक के शारीरिक, सामाजिक, मानसिक व बौद्धिक विकास के विभिन्न प्रतिमानों एवं पारिवारिक व सामुदायिक संबंधों से परिचित विद्यार्थी बालकों के समुचित विकास एवं उनमें आदर्श नागरिक बनने के गुण विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
2. गृह विज्ञान शिक्षा से छात्र – छात्राओं को यह आभास कराया जाता है कि सीमित संसाधनों का उचित व प्रभावी प्रबन्धन कैसे किया जाये ? यह विषय विद्यार्थियों में सौंदर्यात्मक प्रवृत्ति के विकास की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। वे कम से कम समय व श्रम में मितव्ययता बरतते हुए घर को सजाने, फर्नीचर को कलात्मक ढंग से रखने, रसोई घर की सुव्यवस्था आदि कार्यों को आसानी से कर पाते हैं। ऐसे विद्यार्थी सजग एवं सचेत उपभोक्ता बनते हैं ।
3. पौष्टिक आहार के ज्ञान से विद्यार्थियों में भोजन संबंधी स्वस्थ आदतों का विकास होता है ।
छात्र – छात्राओं को विभिन्न बीमारियों (संक्रामक, गैर संचरणीय रोग एवं पोषण संबंधी) उनकी रोकथाम तथा रोगियों की सामान्य परिचर्या व भोजन संबंधी व्यवहारिक जानकारी होती है। ये छात्र-छात्राएं घर में होने वाली छोटी-मोटी दुर्घटनाओं के दौरान प्राथमिक चिकित्सा भी प्रदान कर सकते हैं।
4. छात्र – छात्राओं को जनसंख्या वृद्धि से होने वाले दुष्परिणामों से अवगत कराया जाता है ताकि वे परिवार नियोजन के विभिन्न साधनों को अपनाते हुए परिवार को सीमित रखकर अपना भविष्य सुखी बना सकें।
5. विद्यार्थी अपने स्वयं, परिवार व घर के लिये वस्त्रों व परिधान का सही चुनाव, खरीददारी, उपयोग व देखरेख कर सकता है । वह स्वयं एवं परिवार के सदस्यों के लिये आकर्षक परिधान भी तैयार कर सकता है।
इस प्रकार गृह विज्ञान शिक्षा द्वारा विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व्यवहारिक रूप से देखने को मिलता है। गृह विज्ञान की शिक्षा से विद्यार्थियों के जीवन संबंधित दैनिक ज्ञान व कौशल में वृद्धि होती है तथा वे परिवार में एक गृहिणी, कार्यकर्त्ता, नेता, व्यवस्थापिका, निर्देशिका एवं नियंत्रिका के रूप में अपने बहुमुखी उत्तरदायित्वों को पूरा कर जीवन को सुखमय एवं उत्तम बना सकती हैं। इस विषय से शिक्षित विद्यार्थी पारिवारिक एवं सामुदायिक सम्बन्धों को दृढ़ बनाने में योगदान दे सकते हैं।

व्यावसायिक महत्त्व :-​


गृह विज्ञान विषय का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् छात्र-छात्राएँ घर एवं घर के बाहर कार्य कर सकते हैं या विभिन्न व्यवसाय भी अपना सकते हैं।
1. गृहिणी घर में ही छोटे स्तर पर सिलाई, खाद्य परिरक्षण (पापड़, बड़ी, अचार, शर्बत, सॉस आदि), हॉबील्ासेज़ एवं पालना गृह आदि व्यवसाय कर सकती है ।
2. गृह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी, शिक्षक विकास कार्यक्रमों के विभिन्न पदों पर, समाज सेवक, ग्राम सेवक, परिवार नियोजन निर्देशक, आहार विशेषज्ञ आदि के रूप में तथा विभिन्न खाद्य, वस्त्र व परिधान संबंधित औद्योगिक संस्थाओं में रोजगार प्राप्त कर सकता है।
3. गृह विज्ञान में व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी स्वयं की औद्योगिक संस्था भी खोल सकते हैं तथा कई अन्य लोगों को रोजगार प्रदान कर सकते हैं।

सामाजिक एवं सामुदायिक महत्त्व :​

  • गृह विज्ञान के विषयों की शिक्षा को विद्यार्थी न केवल अपने परिवार को खुशहाल बनाने के लिये काम में ले सकते हैं बल्कि वे इस शिक्षा व तकनीकों को गाँवों व शहरों में प्रसारित कर लोगो को इस शिक्षा को व्यवहार में लाने के लिये प्रोत्साहित एवं निश्चित कर सामाजिक एवं सामुदायिक जीवन को बेहतरीन व उन्नत बनाने में मदद कर सकते हैं। इस प्रकार विद्यार्थी अपने सामाजिक व सामुदायिक उत्तरदायित्वों का भली भांति निर्वाह कर सकते हैं।

उपरोक्त बिन्दुओं के आधार पर आपने देखा कि गृह विज्ञान की शिक्षा केवल बालिकाओं के लिये ही उपयोगी नहीं है बल्कि आज के बालकों को भी गृह विज्ञान की शिक्षा अर्जित करनी चाहिये जिससे वे भी अपने परिवार, समुदाय व समाज को उन्नत व खुशहाल जीवन प्रदान कर सकें । अन्त में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि गृह विज्ञान शिक्षा न केवल बालिकाओं के लिये ही उपयोगी है वरन् बालकों के लिये भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। गृहस्थी रूपी गाड़ी को पुरूष व स्त्री दोनों ही मिलकर चलाते हैं अतः वे यह शिक्षा प्राप्त कर स्वयं, परिवार व समाज को उन्नत व खुशहाल जीवन प्रदान कर सकते हैं।

महत्त्वपूर्ण बिन्दु :–

1. गृह विज्ञान एक व्यवहारिक विज्ञान है जिसमें विज्ञान व कला के विविध विषयों का ज्ञान सम्मिलित है ।
2. गृह विज्ञान को गृह कला, घरेलू कला, घरेलू अर्थशास्त्र एवं गृह अर्थशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है ।
3. गृह विज्ञान विद्यार्थियों में गृह क्रियाकलापों हेतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण को तो सम्मिलित करता ही है साथ ही साथ उनमें इन कार्यों के सफलतापूर्वक संपादन के लिये पूर्ण कौशल, निपुणता, सौन्दर्य, रूचि एवं कलात्मकता को भी विकसित करता है।
4. गृह विज्ञान के पाँच विभाग खाद्य एवं पोषण, मानव विकास एवं पारिवारिक अध्ययन, पारिवारिक संसाधन प्रबन्धन, वस्त्र एवं परिधान अभिकल्पन तथा गृह विज्ञान प्रसार एवं संचार प्रबन्ध हैं।

5. गृह विज्ञान से शिक्षित छात्रा परिवार में एक गृहिणी, कार्यकर्त्ता, नेता, व्यवस्थापिका, निर्देशिका एवं नियन्त्रिका के रूप में अपने बहुमुखी उत्तरदायित्वों का निर्वाह करती है।
6. गृह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी न केवल स्वयं, परिवार एवं समुदाय के जीवन स्तर को उन्नत बना सकते हैं बल्कि वे घर तथा घर से बाहर विविध व्यवसाय अपनाकर रोजगार भी प्राप्त कर सकते हैं ।
7. गृह विज्ञान की शिक्षा बालक व बालिकाओं दोनों के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण है ।




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