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जल संरक्षण एवं प्रबंधन (Water conservation and management in Hindi)

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Water conservation and management in Hindi

  • जल ही जीवन है हमारी की सतह का 70 प्रतिशत भाग जलमग्न है। इस जल का 2.5 प्रतिशत भाग ही मानव के द्वारा उपयोग मे लिया जाता है | सम्पूर्ण जल का 97.5 प्रतिशत भाग अलवणीय होने के कारण अनुपयोगी है | बढती जनंसख्या और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुन दोहन से आज मनुष्य के सामनें कई समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं इनमें से जल संकट एक महत्वपूर्ण समस्या बन कर प्रकट हुई है। इसका कारण जल स्त्रोतों का प्रदूषण, भू-जल का अतिदोहन, जल की आर्थिक मांग, मानसून की अनिश्चितता तथा पारम्परिक स्त्रोतो की उपेक्षा है। जल अभाव की समस्या ने राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव पैदा कर दिया है भारत में लगभग सभी नदियों के जल के बैंटवारे को लेकर पड़ौसी राज्यों में तनाव की स्थिति बनी हुई है । अत: जल संसाधन का संरक्षण व प्रबंधन आज की सबसे बड़ी माँग है। जल संरक्षण व प्रबंधन के तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
    1) जल की उपलब्धता बनाए रखना |
    2) जल को प्रदूषित होने से बचाना |
    3) संदूषित जल को स्वच्छ करके उसका पुनर्चक्रण करना |

जल सरंक्षण व प्रबंधन के उपाय

  • जल एक चक्रीय संसाधन है यदि इसका युक्तियुक्त उपयोग किया जाए तो इस की कमी नहीं होगी |
  • जल का संरक्षण जीवन का संरक्षण है जल संरक्षण हेतु निम्न उपाय किए जाने चाहिए-
    1) जल को बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा घोषित कर उसका समुचित नियोजन किया जाना चाहिए।
    2) वर्षा जल संग्रहण विधियों द्वारा जल का संग्रहण किया जाना चाहिए।
    3) घरेलू उपयोग में जल की बर्बादी को रोका जाना चाहिए।
    4) भू-जल का अति दोहन नहीं किया जाना चाहिए।
    5) जल को प्रदूषित होने से रोकना चाहिए |
    6) जल को पुनर्चक्रित कर काम मे लिया जाना चाहिए |
    7) बाढ नियंत्रण व जल के समुचित उपयोग के लिए नदियों को परस्पर जोड़ा जाना चाहिए |
    8) सिंचाई फव्वारा विधि व टपकन/बूँद विधि से की जानी चाहिए।
  • इस दिशा मे पहला कदम है समाकलित जल संभर प्रबंधन द्वारा जल संसाधनों का वैज्ञानिक प्रबंधन, दूसरा कदम है वर्षा जल संग्रहण |

समाकलित जलसंभर प्रबंधन (Intigrated watershed management)

  • जलसंभर प्रबंधन में किसी क्षेत्र विशेष की भूमि व जल प्रबंधन के लिए कृषि, वानिकी, तकनीको का सम्मिलित प्रयोग होता है | जलसंभर एक ऐसा क्षेत्र है जिसका जल एक बिन्दु की ओर प्रवाहित होता है। यह एक भू-आकृति इकाई है, सहायक नदी का बेसिन है, जिसका उपयोग सुविधानुसार छोटे प्राकृतिक क्षेत्रो में समन्वित विकास के लिए किया जा सकता है। जलसंभर प्रबंधन समग्र विकास की सोच है g मिट्टी और आर्द्रता का संरक्षण, बाढ नियत्रंण, जल संग्रहण, वृक्षारोपण, उद्यान चरागाह विकास, सामाजिक वानिकी आदि कार्यक्रम शामिल है | भारत में जलसंभर विकास कार्यक्रम कृषि, ग्रामीण विकास तथा पर्यावरण वन मंत्रालय के सहयोग से संचालित है |

वर्षा जल संग्रहण

  • वर्षा जल संग्रहण, भू-जल पुनर्भरण का एक महत्वपूर्ण उपाय है | राजस्थान जैसे प्रदेश में जहां अधिकतर सूखा तथा अकाल की स्थिति बनी रहती है, वर्षा संग्रहण प्राथमिक आवश्यकता है | प्राचीन काल से ही देश में वर्षा जल संग्रहण की परम्परा रही है – ताल – तलैया, जोहड़, टाका, टोबा, बावड़ी इत्यादि के रुप में जल संग्रहण होता था |

राजस्थान में जल संचयन की निम्न स्वदेशी पद्धतियाँ प्रचलित हैं-

1) खड़ीन :-
खड़ीन मिटटी का बना अस्थायी तालाब होता है जिसे किसी ढालवाली भूमि के नीचे निर्मित करते है इसके दो तरफ मिट्टी की दीवार (धोरा) तथा तीसरी तरफ पत्थर की मजबूत दीवार होती है | पानी की मात्रा अधिक होने पर खड़ीन भर जाता है और पानी अगली खड़ीन में चला जाता है जब खड़ीन का पानी सूख जाता है तो उसमें कृषि की जाती है |

Water conservation and management in Hindi


2) तालाब:- राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण की प्राचीन पद्धतियों में तालाब प्रमुख है | ये पुरुषों तथा स्त्रियों के नहाने हेतु अलग-अलग बने होते थे | तालाब की तलहटी पर कूँआ बना होता था जिसे बेरी कहते है। जल संचयन की यह प्राचीन विधि आज भी अपना महत्व रखती है तथा भूमि जल स्तर बढ़ाने का एक वैज्ञानिक आधार है।

Water conservation and management in Hindi


3) झीलः- राजस्थान में प्राकृतिक एवं कुत्रिम दोनो प्रकार की झीलें पायी जाती हैं | झीलें वर्षाजल संग्रहण की अति प्राचीन पद्धति है। झीलो से रिसने वाला पानी इस के नीचे स्थित जल स्त्रोतों जैसे कुएँ, बांवड़ी, कुण्ड आदि का जलस्तर बढाने में सहायक होता है |

जल सरंक्षण एंव प्रबंधन


4) बावड़ी:- राजस्थान में बावड़ियों का अपना स्थान है | ये जल संचयन की पुरानी तकनीक है बावड़ी में उतरने हेतु सीढियाँ एव तिबारे बने होते थे। ये कलाकृतियों से सम्पन्न होती थीं |

जल सरंक्षण एंव प्रबंधन


5) टोबा:- थार के रेगिस्तान में टोबा जल संग्रहण का प्रमुख पारम्परिक स्त्रोत है । यह नाडी के आकार का होता है किन्तु नाडी से गहरा होता है।

जल सरंक्षण एंव प्रबंधन



प्रमुख प्राकृतिक संसाधन FAQ –


प्रश्न 1. खेजड़ली के बलिदान से सबंधित है
(क) बाबा आमटे
(ख) सुन्दरलाल बहुगुणा
(ग) अरुन्धती राय
(घ)

उत्तर ⇒ { (घ) अमृता देवी }

प्रश्न 2. भू-जल संकट के कारण हैं
(क) जल-स्रोतों का प्रदूषण
(ख) भू-जल का अतिदोहन
(ग) जल की अधिक मांग
(घ) उपरोक्त सभी

उत्तर ⇒ { (घ) उपरोक्त सभी }

प्रश्न 3. लाल आंकड़ों की पुस्तक सम्बन्धित है
(क) संकटग्रस्त वन्य जीवों से
(ख) दुर्लभ वन्य जीवों से
(ग) विलुप्त जातियों से
(घ) उपरोक्त सभी

उत्तर ⇒ { (घ) उपरोक्त सभी }

प्रश्न 4. सरिस्का अभयारण्य स्थित है
(क) अलवर में
(ख) जोधपुर में
(ग) जयपुर में
(घ) अजमेर में

उत्तर ⇒ { (क) अलवर में }

प्रश्न 5. सर्वाधिक कार्बन की मात्रा उपस्थित होती है
(क) पीट में
(ख) लिग्नाइट में
(ग) एन्थेसाइट में
(घ) बिटुमिनस में

उत्तर ⇒ ???????

प्रश्न 1. संकटापन्न जातियों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- वे जातियाँ जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी।

प्रश्न 2. क्या है?
उत्तर- राष्ट्रीय उद्यान वे प्राकृतिक क्षेत्र हैं, जहाँ पर पर्यावरण के साथ-साथ वन्य जीवों एवं प्राकृतिक अवशेषों का संरक्षण किया जाता है।

प्रश्न 3. सिंचाई की विधियों के नाम बताइये।
उत्तर- सिंचाई फव्वारा विधि व टपकन विधि से की जाती है।

प्रश्न 4. उड़न गिलहरी किस वन्य जीव अभयारण्य में पायी जाती है?
उत्तर- सीतामाता तथा प्रतापगढ़ अभयारण्य

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