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भारत – भौगोलिक स्थिति और विस्तार (bhart ki sthiti aur vistar)

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bhart ki sthiti aur vistar

  • आर्यों की भरत नाम की शाखा अथवा महामानव के नाम पर हमारे देश का नामकरण भारत हुआ । प्राचीन काल में आर्यों की भूमि के कारण यह आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था। ईरानियों ने सिन्धु नदी के तटीय निवासियों को हिन्दू एवं इस भू-भाग को हिन्दूस्तान का नाम दिया। रोम निवासियों ने सिन्धु नदी को इण्डस तथा यूनानियों ने इण्डोस व इस देश को इण्डिया कहा। यही देश विश्व में आज भारत के नाम से विख्यात है ।
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  • हमारे देश में सभ्यता और संस्कृति का उदय अतीत काल में ही हो गया था, जबकि विश्व के अधिकांश देश असभ्य अथवा अर्द्धसभ्य ही थे। हमने ही संस्कृति व ज्ञान का प्रकाश विश्व के विभिन्न भागों में फैलाया। भारत एक महान, सुसम्पन्न एवं सुसंस्कृत देश है। हमारी प्राचीन संस्कृति भारत को एकता का वरदान प्रदान करती है। इस गौरवशाली अतीत के पीछे भारत के भौगोलिक व्यक्तित्व का विशेष योगदान रहा है । मध्य युग में विदेशियों के आक्रमण, लूटपाट व आधिपत्य से हमारी प्रगति एवं प्रतिष्ठा कुण्ठित हुई। तत्पश्चात् से भारत की जनता में जागरण आया और हम महात्मा गाँधी के नेतृत्व में शांति व अहिंसा के अद्वितीय मार्ग पर चलकर स्वतन्त्र हुए । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारा देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है, किन्तु हम स्वतन्त्रता-पूर्व के आर्थिक शोषण, तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के भार तथा विभिन्न धार्मिक विचारधाराओं के स्वदेशी संस्कृति व राष्ट्रीय धारा में विलय की कठिन संक्रमण परिस्थितियों से जूझ रहे हैं । भारत का अतीत स्वर्णिम था, वर्तमान संक्रमण में है, किन्तु हम -प्रेम, धार्मिक सहिष्णुता, सूझबूझ, ईमानदारी व कठोर परिश्रम के द्वारा अपने खोये हुए गौरव को प्राप्त करके सम्पन्न हो सकते हैं तथा एकता सूझ में बंधे हुए सुसंस्कृत समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस चहुमुखी उत्थान के भागीरथ प्रयत्न में भारत का भौगोलिक व्यक्तित्व हमें उज्ज्वल भविष्य की आशा प्रदान करता है ।

भारत की स्थिति, आकार और विस्तार

  • भारत भूमध्य रेखा के उत्तर में 8° 4′ से 37°6′ अक्षांश तक तथा 68° 7′ से 97′ 25′ पूर्वी देशान्तर तक फैला हुआ है। कर्क रेखा अर्थात् 231⁄2° उत्तरी अक्षांश हमारे देश के लगभग मध्य से गुजरती है। यह रेखा भारत को दो भागों में विभक्त करती है ( 1 ) उत्तरी भारत, शीतोष्ण कटिबन्ध में फैला है तथा (2) दक्षिणी भारत, जिसका विस्तार उष्ण कटिबन्ध है । भारत का सबसे उत्तरी छोर बर्फीले हिमालय पर्वत तन्त्र का अंग है जो एशिया के हृदय – स्थल में स्थित संसार की छत – पामीर के दक्षिण की ओर फैला हुआ है । कन्याकुमारी इसका दक्षिणतम छोर है । ये दोनों सिरे लगभग 30 अक्षांशीय दूरी पर स्थित हैं। यह दूरी भूमध्य रेखा से उत्तरी ध्रुव की दूरी का लगभग एक-तिहाई है। भारत की स्थिति उत्तरी गोलार्द्ध में है । कन्याकुमारी से भूमध्य रेखा केवल 876 किलोमीटर दक्षिण में है । यहाँ भारत से मन्नार की खाड़ी व पाक जलडमरूमध्य द्वारा श्रीलंका अलग होता है। कर्क रेखा के दक्षिण में कुमारी अन्तरीप की ओर प्रायद्वीपीय भारत धीरे-धीरे संकड़ा होता जाता है । यह हिन्द महासागर को दो भागों में विभक्त करता है । पश्चिमी भाग अरब सागर एवं पूर्वी भाग बंगाल की खाड़ी कहलाता है ।
  • भारत का सुदूर पश्चिमी बिन्दु कच्छ के रन का क्षारीय दलदली छोर है । अछूते वनों से आच्छादित पर्वतीय क्षेत्र इसका सुदूरपूर्वी बिन्दु है जहाँ इसकी सीमा म्यांमार (बर्मा) तथा चीन से मिलती है। इन दोनों छोरों के मध्य लगभग 30° देशान्तरीय दूरी है । यह दूरी ग्लोब के कुल देशांतरीय विस्तार का लगभग 1/12 वां भाग है । इतने विस्तार के कारण ही अरूणाचल प्रदेश में सूर्योदय के दो घण्टे पश्चात् काठियावाड़ में सूर्य के दर्शन होते हैं । अत: 821⁄2° पूर्वी देशान्तर रेखा का स्थानीय समय भारत का प्रामाणिक समय (Indian Standard Time) माना जाता है। यह रेखा इलाहाबाद के पास से गुजरती है ।
  • भारत की उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई लगभग 3214 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक चौड़ाई 2933 किलोमीटर है । सम्पूर्ण देश का क्षेत्रफल लगभग 32.88 लाख वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल के अनुसार भारत का विश्व में सातवां स्थान है। रूसी गणराज्य, कनाडा, चीन, यू.एस.ए., ब्राज़ील व ऑस्ट्रेलिया भारत से बड़े देश हैं। भारत का आकार जापान से नौ गुना तथा इंग्लैण्ड से 14 गुना बड़ा है। भारत सम्पूर्ण विश्व का लगभग 1/46वां भाग है। इसकी स्थलीय सीमा लगभग 15,200 किलोमीटर तथा तटीय सीमा लगभग 6,100 किलोमीटर है ।

तट रेखा —

  • भारत के क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी तट रेखा बहुत ही कम लम्बी है। इसकी लम्बाई केवल 6100 कि.मी. है । यह तट रेखा प्रायः सीधी एवं सपाट है। यही कारण है कि तट रेखा पर सामान्यतः अच्छे बन्दरगाहों की कमी है । तट के समीप द्वीप भी बहुत कम है । पूर्वी तट के द्वीपों में हेयर द्वीप, पामबन द्वीप और हरिकोटा द्वीप तथा पश्चिमी तट के द्वीपों में लक्षद्वीप व ट्रॉम्बे द्वीप मुख्य हैं । अण्डमान और निकोबार द्वीप बंगाल की खाड़ी के द्वीपों में उल्लेखनीय हैं। मुम्बई साल्सेट नामक द्वीप पर बसा है और इसके निकट ही ऐलीफैन्टा नामक द्वीप भी है । चिल्का झील और बंगाल की खाड़ी के बीच पारिकुद द्वीप मिलते हैं ।

भारत की तट रेखा को दो भागों में बांटा जा सकता है –

  • (1) पूर्वी तट – इसका विस्तार गंगा नदी के डेल्टा से कुमारी अन्तरीप तक है। इसके उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार तट तथा दक्षिणी भाग को कारोमण्डल तट कहते हैं । उत्तरी सरकार तट कृष्णा नदी के डेल्टा से लेकर गंगा नदी के डेल्टा तक विस्तृत है । यह तट उथला है । यहाँ स्थित कोलकाता बन्दरगाह छिछला है जिसके कारण बड़े जहाजों के लिये अनुपयुक्त है। इस कमी को दूर करने के लिये हल्दिया बन्दरगाह का विकास कोलकाता के सहायक बन्दरगाह के रूप में किया गया है। यहाँ मशीनीकृत डॉक पद्धति और अधिक ड्राफ्ट वाले जहाजों के प्रवेश की सुविधा है। विशाखापट्टनम और पाराद्वीप बन्दरगाहों की स्थिति व्यापारिक दृष्टि से अच्छी है क्योंकि इनके समीप समुद्र शान्त है तथा बड़े-बड़े जहाजों के ठहरने की सुविधा है । इस तट पर काकीनाडा, वाल्टेयर,विमलीपट्टम, गोपालपुर व पुरी अन्य बन्दरगाह हैं ।
    कारोमण्डल तट कृष्णा नदी के डेल्टा से कुमारी अन्तरीप तक विस्तृत एक सपाट, छिछला और बलुई तट है । इस तट पर चेन्नई एक महत्त्वपूर्ण कृत्रिम बन्दरगाह है। कन्याकुमारी, रामेश्वरम्, धनुषकोटि, कारीकल, पांडिचेरी, कुड्डालोर, पुत्तुच्चोरि, नागापट्टम तथा तूतीकोरन आदि भी इस तट पर प्रमुख बन्दरगाह हैं। इस तट पर स्थित सेतुबन्ध व रामेश्वरम् तीर्थयात्रियों के लिए मुख्य आकर्षण हैं ।
  • ( 2 ) पश्चिमी तट – यह खम्भात की खाड़ी से कुमारी अन्तरीप तक फैला है । इस तट को तीन भागों में बाँटा जा सकता है –
    (अ) मलाबार तट – इसका विस्तार गोआ से कुमारी अन्तरीप तक है । यह तट रेखा कटी-फटी होने के कारण यहाँ प्राकृतिक बन्दरगाह हैं, लेकिन तेज हवाओं के कारण इसके समीप बालू एकत्रित हो जाती है। अनूप झीलें इस तट की विशेषता हैं। कोचीन ऐसी ही एक अनूप झील पर स्थित होने के कारण एक श्रेष्ठ बन्दरगाह है। यहाँ जलयान बनाने का कारखाना है। मंगलौर, एलेप्पी, कोजीकोड, तिरुवनन्तपुरम आदि इस तट पर अन्य बन्दरगाह हैं ।
    ( ब ) कोंकण तट – यह गोआ से सूरत तक फैला है । यह तट सपाट और कठोर चट्टानों से बना हुआ है । द्वीपों और पश्चिमी तट के वनों से व नदी-घाटियाँ ही आवागमन के मार्ग थे । किन्तु भारत पर चीन के आक्रमण ने सिद्ध कर दिया है कि आधुनिक तकनीकी विकास तथा वायु-परिवहन के प्रगतिशील चरणों के द्वारा यह पर्वतीय सीमा अब अभेद्य व अप्रवेश्य नहीं रह गई है । अत: हमारी उत्तरी व पूर्वी सीमाओं का सामरिक महत्व बढ़ गया है ।
  • पूर्व में हमारी सीमाएँ बांग्लादेश से भी मिलती हैं । भारत के पांच राज्य – मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय, असम व पश्चिमी बंगाल, बांग्लादेश की सीमा पर स्थित हैं ।
  • सन 1947 में विभाजून के फलस्वरूप हमारी भूमि से अलग हुआ पाकिस्तान हमारी पश्चिमी सीमा बनाता है । उस भूमि से हमारे सांस्कृतिक सम्बन्ध के प्रमाण आज भी सिन्ध के मोहनजोदड़ो में उपलब्ध हैं। पाकिस्तान के साथ हमारी पश्चिमी सीमा स्थलीय एवं कृत्रिम है। पाकिस्तान के साथ हमारे देश की सीमा जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान व गुजरात राज्यों से मिलती है । हमारे जम्मू-कश्मीर राज्य के कुछ भाग पर पाकिस्तान अवैधानिक रूप से अधिकार किये हुए है। भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का कारण भी यही है । शांति- प्रियता भारतीय संस्कृति का मूल है। मध्य एशिया के कुछ शहरों में खुदाई से प्राप्त भारतीय वस्तुएँ, चीनी मठों में रखी बौद्ध पांडुलिपियाँ, दक्षिणी-पूर्वी एशिया के कई देशों के मन्दिर हमारी शांतिप्रियता और सह-अस्तित्व के प्रमाण हैं । इतिहास में इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि भारतीय सेनाओं ने कभी किसी देश पर आक्रमण किया हो । किन्तु हम अपने देश की स्वतन्त्रता व सीमाओं की रक्षा के प्रति निष्ठावान हैं राष्ट्रीय एकता हमारी सबसे बड़ी शक्ति है ।
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भारत की अवस्थिति – एक कारक

  • उपमहाद्वीपीय अवस्थिति – दक्षिणी एशिया में तीन प्रायद्वीप हैं । इन तीनों प्रायद्वीपों (Peninsulas) में भारतीय उपमहाद्वीप ( Indian Sub-continent) सबसे बड़ा है। विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया के दक्षिण-मध्य भाग में स्थित भारत एक उपमहाद्वीप के रूप में विस्तृत है। इसके उत्तर में चीन, नेपाल व भूटान, दक्षिण में श्रीलंका व हिन्द महासागर, पूर्व में बांग्लादेश, म्यांमार (बर्मा) व बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में पाकिस्तान व अरब सागर है ।
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  • विश्व में कदाचित प्रकृति द्वारा इतना स्पष्ट रूप से परिभाषित व सीमांकित क्षेत्र अन्य कोई नहीं है जितना भारत । इसीलिये इसे उपमहाद्वीप की संज्ञा दी गई है । यह उपमहाद्वीप उत्तर में विशाल हिमालय पर्वतीय श्रृंखला, पश्चिम में मरूस्थल, पूर्व में सघन वनों से आच्छादित पर्वत श्रेणियों व गहरी घाटियों तथा अन्यत्र विशाल जलराशि द्वारा सीमांकित है । वैसे भारतीय उपमहाद्वीप में कई प्राकृतिक व सांस्कृतिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं । सर्वोच्च पर्वत श्रेणियाँ व विशाल समतल मैदान, नवीन मोड़दार पर्वत व प्राचीन पठार, उष्ण मरूस्थल व सदाबहार वन, विश्व के सर्वाधिक आर्द्र व अति शुष्क क्षेत्र, झूमिंग व विकसित यांत्रिक कृषि, हस्तकला की वस्तुएँ व आधुनिकतम औद्योगिक उत्पाद, घोड़ा – खच्चर, बैलगाड़ी व आधुनिक आवागमन के साधन, वन-क्षेत्रीय आवास व महानगरीय संस्कृति, विभिन्न स्वदेशी व विदेशी धर्मों का सहअस्तित्व तथा भाषा, वेशभूषा, रीति-रिवाज आदि की भिन्नताएँ कुछ उदाहरण हैं । किन्तु इन सभी व्यापक भिन्नताओं के बावजूद भारतीय उपमहाद्वीप प्राकृतिक व सांस्कृतिक दृष्टि से एकता के सूत्र में बंधी हुई एक विशिष्ट भौगोलिक इकाई है। इसलिये विविधताओं में एकता ( Unity in diversity ) भारत की अनूठी विशेषता मानी जाती है।
  • पड़ौसी देशों के सन्दर्भ में भारत की अवस्थिति – इस दृष्टि से भारत के महत्व को बढ़ाने में हिन्द महासागर की उपयोगी भूमिका रही है । हिन्द महासागर भारत सहित प्राच्य विश्व (पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया) को एकता के सूत्र में बांधता है। पिछले चार हजार वर्षों से भी अधिक समय से भारत के व्यापारिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध पश्चिम में बैबीलोन, मिस्र आदि देशों से तथा पूर्व में हिन्दचीन व दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों से रहे हैं। महासागरीय व्यापारिक मार्गों के विकास से काफी पहले भारत के क्षेत्रीय सम्बन्धों के विस्तार में स्थलीय मार्गों ने योगदान किया । यद्यपि अप्रवेश्य व अभेद्य हिमालय हमारे देश की उत्तरी सीमा बनाते हैं, तथापि इन्हीं में दरों व घाटियों से होकर आवागमन के मार्ग विकसित हुए । इन्हीं मार्गों से होकर हमारे देश में आक्रमणकारी आये और इन्हीं से होकर बौद्ध भिक्षु तिब्बत, चीन, कोरिया व जापान तक अपना शान्ति संदेश ले गये। पश्चिमी, मध्य पूर्वी व दक्षिणी-पूर्वी एशिया के मध्य सम्पर्क सूत्र वाली अवस्थिति के कारण भारत के लिये यह सम्भव हुआ ।
  • विश्व के परिप्रेक्ष्य में अवस्थिति – पूर्वी गोलार्द्ध के मध्य में हिन्द महासागर के शीर्ष पर भारत की अवस्थिति ग्लोबीय दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस अवस्थिति के कारण ही भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक मार्गों का संगम बन गया है । स्वेज़ मार्ग, अटलाण्टिक समुद्री मार्ग, आशा अन्तरीप मार्ग एवं प्रशान्त महासागरीय मार्ग भारत में आकर मिलते हैं, जिससे देश के आयात व निर्यात व्यापार में वृद्धि हुई है। पश्चिमी देशों से सुदूरपूर्व को जाने वाले अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग ही नहीं, बल्कि वायुमार्ग भी भारत से होकर गुजरते हैं। दिल्ली, मुम्बई, चैन्नई और कोलकाता अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के हवाई अड्डे हैं । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक मार्गों का मिलन स्थल होने के कारण यहाँ वाणिज्यिक, व्यापारिक एवं संचार सुविधाओं का भी तीव्र गति से विकास हुआ है ।

अवस्थिति जन्य लाभ-

  • भारत को अपने गौरवशाली अतीत, सम्मानपूर्ण वर्तमान एवं आशातीत भविष्य पर गर्व है । भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की आधारशिला इसकी भौगोलिक स्थिति ही है । भारत की भौगोलिक स्थिति पूर्वी गोलार्द्ध के मध्य में है जिसका विशेष महत्व है-

1. भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित होने के कारण व्यापारिक मार्गों का संगम बन गया है । अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग जैसे स्वेज़ मार्ग, आशा अन्तरीप मार्ग, अटलाण्टिक मार्ग एवं प्रशान्त महासागरीय मार्ग भारत में आकर मिलते हैं जिससे देश के आयात व निर्यात में वृद्धि हुई है ।
2. पश्चिमी देशों से सुदूरपूर्व को जाने वाले वायुमार्ग भी भारत से होकर गुजरते हैं। दिल्ली, मुम्बई, चैन्नई और कोलकाता आदि अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के हवाई अड्डे हैं । अत: यहाँ संचार एवं सम्र्पक की सुविधा है ।
3. भारत के उष्ण व शीतोष्ण दोनों ही कटिबन्धों में स्थित होने का कारण यहाँ प्रायः दोनों प्रकार की कृषि फसलें पैदा की जाती हैं ।
4. भारत की स्थिति के कारण ही देश के बन्दरगाह वर्ष भर खुले रहते हैं ।
5. भारत के पड़ौसी देश, जैसे – नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और अफ्रीका के देश अविकसित हैं । अतः भारत का निर्मित माल निकट के बाजारों में ही खप जाता है ।
6. भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है जो उत्तर से आने वाली ठण्डी हवाओं से देश की रक्षा करते हैं तथा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून को रोककर देश में वर्षा होने में सहायक होते हैं ।
7. इस विशिष्ट स्थिति के कारण ही भारत का क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व बढ़ा है । अतः ईर्ष्यावश एवं इस क्षेत्र में अपना महत्त्व बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ विदेशी ताकतें हमारे देश में अस्थिरता उत्पन्न करने का प्रयास करती रहती हैं । इनसे हमें सावधान रहना चाहिए।
8. भारत की स्थिति का महत्व इस बात से और भी स्पष्ट हो जाता है कि इसके निकटवर्ती महासागर का नाम इसी के आधार पर हिन्द महासागर पड़ा है ।
9. हिन्द महासागर में भारत की विशिष्ट स्थिति इसे उपमहाद्वीप बनाती है ।

महत्वपूर्ण बिन्दु —

  1. भारत का अतीत गौरवपूर्ण रहा है।
  2. विविधताओं में एकता के सूत्र के द्वारा हमारे देश का भविष्य भी उज्जवल है।
  3. स्थिति – 8° 4′ से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तथा 68°7′ से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य भारत स्थित है ।
  4. कर्क रेखा हमारे देश के लगभग मध्य से होकर गुजरती है ।
  5. हमारे देश में 822° पूर्वी देशान्तर के स्थानीय समय को प्रामाणिक समय माना जाता है ।
  6. भारत की अधिकतम लम्बाई उत्तर से दक्षिण तक 3214 कि.मी. तथा अधिकतम चौड़ाई पूर्व से पश्चिम तक 2933 कि.मी. तथा क्षेत्रफल 32.88लाख वर्ग कि.मी. है।
  7. क्षेत्रफल की दृष्टि से रूस, कनाडा, चीन, यू.एस.ए., ब्राज़ील व ऑस्ट्रेलिया भारत से बड़े देश है ।
  8. हमारे देश की स्थलीय सीमा 15,200 कि.मी. तथा जलीय सीमा 6100 कि.मी. है।
  9. पूर्वी तट उत्तरी सरकार तट व कारोमण्डल तट ।
  10. पश्चिमी तट मलाबार तट, कोंकण तट व सौराष्ट्र तट ।
  11. भारत की अवस्थिति एक कारक के रूप में अति महत्वपूर्ण है ।
  12. भारत को अवस्थिति जन्य अनेक लाभ हैं।



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